Add parallel Print Page Options

प्रभु का भोज

(मरकुस 14:22-26; लूका 22:15-20; 1 कुरिन्थियों 11:23-25)

26 जब वे खाना खा ही रहे थे, यीशु ने रोटी ली, उसे आषीष दी और फिर तोड़ा। फिर उसे शिष्यों को देते हुए वह बोला, “लो, इसे खाओ, यह मेरी देह है।”

27 फिर उसने प्याला उठाया और धन्यवाद देने के बाद उसे उन्हें देते हुए कहा, “तुम सब इसे थोड़ा थोड़ा पिओ। 28 क्योंकि यह मेरा लहू है जो एक नये वाचा की स्थापना करता है। यह बहुत लोगों के लिये बहाया जा रहा है। ताकि उनके पापों को क्षमा करना सम्भव हो सके। 29 मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं उस दिन तक दाखरस को नहीं चखुँगा जब तक अपने परम पिता के राज्य में तुम्हारे साथ नया दाखरस न पी लूँ।”

30 फिर वे फ़सह का भजन गाकर जैतून पर्वत पर चले गये।

Read full chapter

26 जब वे भोजन के लिए बैठे, येशु ने रोटी ली, उसके लिए आशीष विनती की, उसे तोड़ा और शिष्यों को देते हुए कहा, “यह लो, खाओ; यह मेरा शरीर है.”

27 तब येशु ने प्याला लिया, उसके लिए धन्यवाद दिया तथा शिष्यों को देते हुए कहा, “तुम सब इसमें से पियो. 28 यह वाचा का[a] मेरा लहू है जो अनेकों की पाप-क्षमा के लिए उण्डेला जा रहा है. 29 मैं तुम पर यह सच प्रकट करना चाहता हूँ कि अब मैं दाखरस उस समय तक नहीं पिऊँगा जब तक मैं अपने पिता के राज्य में तुम्हारे साथ नया दाखरस न पिऊँ.”

30 तब एक भक्ति गीत गाने के बाद वे सब ज़ैतून पर्वत पर चले गए.

Read full chapter

Footnotes

  1. 26:28 कुछ पाण्डुलिपियों मूल हस्तलेखों में: नई वाचा का.