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यीशु का अपने देश लौटना

(मरकुस 6:1-6; लूका 4:16-30)

53 इन दृष्टान्त कथाओं को समाप्त करके वह वहाँ से चल दिया। 54 और अपने देश आ गया। फिर उसने यहूदी आराधनालयों में उपदेश देना आरम्भ कर दिया। इससे हर कोई अचरज में पड़ कर कहने लगा, “इसे ऐसी सूझबूझ और चमत्कारी शक्ति कहाँ से मिली? 55 क्या यह वही बढ़ई का बेटा नहीं है? क्या इसकी माँ का नाम मरियम नहीं है? याकूब, यूसुफ, शमौन और यहूदा इसी के तो भाई हैं न? 56 क्या इसकी सभी बहनें हमारे ही बीच नहीं हैं? तो फिर उसे यह सब कहाँ से मिला?” 57 सो उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया।

फिर यीशु ने कहा, “किसी नबी का अपने गाँव और घर को छोड़ कर, सब आदर करते हैं।” 58 सो उनके अविश्वास के कारण उसने वहाँ अधिक आश्चर्य कर्म नहीं किये।

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नाज़रेथवासियों द्वारा विश्वास करने में विरोध

(मारक 6:1-6)

53 दृष्टान्तों में अपनी शिक्षा दे चुकने पर येशु उस स्थान से चले गए.

54 तब येशु अपने गृहनगर में आए और वहाँ वह यहूदी-सभागृह में लोगों को शिक्षा देने लगे. इस पर वे चकित हो कर आपस में कहने लगे, “इस व्यक्ति को यह ज्ञान तथा इन अद्भुत कामों का सामर्थ्य कैसे प्राप्त हो गया? 55 क्या यह उस बढ़ई का पुत्र नहीं? और क्या इसकी माता का नाम मरियम नहीं और क्या याक़ोब, योसेफ़, शिमोन और यहूदाह इसके भाई नहीं? 56 और क्या इसकी बहनें हमारे बीच नहीं? तब इसे ये सब कैसे प्राप्त हो गया?” 57 वे येशु के प्रति क्रोध से भर गए.

इस पर येशु ने उनसे कहा, “अपने गृहनगर और परिवार के अलावा भविष्यद्वक्ता कहीं भी अपमानित नहीं होता.”

58 लोगों के अविश्वास के कारण येशु ने उस नगर में अधिक अद्भुत काम नहीं किए.

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