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बीमार लड़के को चंगा करना

(मत्ती 17:14-20; लूका 9:37-43)

14 जब वे दूसरे शिष्यों के पास आये तो उन्होंने उनके आसपास जमा एक बड़ी भीड़ देखी। उन्होंने देखा कि उनके साथ धर्मशास्त्री विवाद कर रहे हैं। 15 और जैसे ही सब लोगों ने यीशु को देखा, वे चकित हुए। और स्वागत करने उसकी तरफ़ दौड़े।

16 फिर उसने उनसे पूछा, “तुम उनसे किस बात पर विवाद कर रहे हो?”

17 भीड़ में से एक व्यक्ति ने उत्तर दिया, “हे गुरु, मैं अपने बेटे को तेरे पास लाया था। उस पर एक दुष्टात्मा सवार है, जो उसे बोलने नहीं देती। 18 जब कभी वह दुष्टात्मा इस पर आती है, इसे नीचे पटक देती है और इसके मुँह से झाग निकलने लगते हैं और यह दाँत पीसने लगता है और अकड़ जाता है। मैंने तेरे शिष्यों से इस दुष्ट आत्मा को बाहर निकालने की प्रार्थना की किन्तु वे उसे नहीं निकाल सके।”

19 फिर यीशु ने उन्हें उत्तर दिया और कहा, “ओ अविश्वासी लोगो, मैं तुम्हारे साथ कब तक रहूँगा? और कब तक तुम्हारी सहूँगा? लड़के को मेरे पास ले आओ!”

20 तब वे लड़के को उसके पास ले आये और जब दुष्टात्मा ने यीशु को देखा तो उसने तत्काल लड़के को मरोड़ दिया। वह धरती पर जा पड़ा और चक्कर खा गया। उसके मुँह से झाग निकल रहे थे।

21 तब यीशु ने उसके पिता से पूछा, “यह ऐसा कितने दिनों से है?”

पिता ने उत्तर दिया, “यह बचपन से ही ऐसा है। 22 दुष्टात्मा इसे मार डालने के लिए कभी आग में गिरा देती है तो कभी पानी में। क्या तू कुछ कर सकता है? हम पर दया कर, हमारी सहायता कर।”

23 यीशु ने उससे कहा, “तूने कहा, ‘क्या तू कुछ कर सकता है?’ विश्वासी व्यक्ति के लिए सब कुछ सम्भव है।”

24 तुरंत बच्चे का पिता चिल्लाया और बोला, “मैं विश्वास करता हूँ। मेरे अविश्वास को हटा!”

25 यीशु ने जब देखा कि भीड़ उन पर चढ़ी चली आ रही है, उसने दुष्टात्मा को ललकारा और उससे कहा, “ओ बच्चे को बहरा गूँगा कर देने वाली दुष्टात्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ इसमें से बाहर निकल आ और फिर इसमें दुबारा प्रवेश मत करना!”

26 तब दुष्टात्मा चिल्लाई। बच्चे पर भयानक दौरा पड़ा। और वह बाहर निकल गयी। बच्चा मरा हुआ सा दिखने लगा, बहुत लोगों ने कहा, “वह मर गया!” 27 फिर यीशु ने लड़के को हाथ से पकड़ कर उठाया और खड़ा किया। वह खड़ा हो गया।

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14 जब ये तीन लौट कर शेष शिष्यों के पास आए तो देखा कि एक बड़ी भीड़ उन शिष्यों के चारों ओर इकट्ठा है और शास्त्री वाद-विवाद किए जा रहे थे. 15 मसीह येशु को देखते ही भीड़ को आश्चर्य हुआ और वह नमस्कार करने उनकी ओर दौड़ पड़ी.

16 मसीह येशु ने शिष्यों से पूछा, “किस विषय पर उनसे वाद-विवाद कर रहे थे तुम?”

17 भीड़ में से एक व्यक्ति ने उनसे कहा, “गुरुवर, मैं अपने पुत्र को आपके पास लाया था. उसमें समाई हुई आत्मा ने उसे गूँगा बना दिया है. 18 जब यह दुष्टात्मा उस पर प्रबल होती है, उसे भूमि पर पटक देती है. उसके मुँह से फेन निकलने लगता है, वह दाँत पीसने लगता है तथा उसका शरीर ऐंठ जाता है. मैंने आपके शिष्यों से इसे निकालने की विनती की थी किन्तु वे असफल रहे.”

19 मसीह येशु ने भीड़ से कहा, “अरे अविश्वासी पीढ़ी! मैं अब और कितने समय तुम्हारे साथ हूँ? मैं कब तक तुम्हारे साथ धीरज रखूँ? यहाँ लाओ उस बालक को.”

20 लोग बालक को उनके पास ले आए. मसीह येशु पर दृष्टि पड़ते ही प्रेत ने बालक में ऐंठन उत्पन्न कर दी. वह भूमि पर गिर कर लोटने लगा और उसके मुँह से फेन आने लगा.

21 मसीह येशु ने बालक के पिता से पूछा, “यह सब कब से हो रहा है?”

“बचपन से,” उसने उत्तर दिया. 22 “इस प्रेत ने उसे हमेशा जल और आग दोनों ही में फेंक कर नाश करने की कोशिश की है. यदि आपके लिए कुछ सम्भव है, हम पर दया कर हमारी सहायता कीजिए!”

23 “यदि आपके लिए!” मसीह येशु ने कहा, “सब कुछ सम्भव है उसके लिए, जो विश्वास करता है.”

24 ऊँचे शब्द में बालक के पिता ने कहा, “मैं विश्वास करता हूँ. मेरे अविश्वास को दूर करने में मेरी सहायता कीजिए.”

25 जब मसीह येशु ने देखा कि और अधिक लोग बड़ी शीघ्रतापूर्वक वहाँ इकट्ठा होते जा रहे हैं, उन्होंने प्रेत को डांटते हुए कहा, “ओ गूंगे और बहिरे प्रेत, मेरा आदेश है कि इसमें से बाहर निकल जा और इसमें फिर कभी प्रवेश न करना.”

26 उस बालक को और भी अधिक भयावह ऐंठन में डाल कर चिल्लाते हुए वह प्रेत उसमें से निकल गया. वह बालक ऐसा हो गया मानो उसके प्राण ही निकल गए हों. कुछ तो यहाँ तक कहने लगे, “इसकी मृत्यु हो गई है.” 27 किन्तु मसीह येशु ने बालक का हाथ पकड़ उसे उठाया और वह खड़ा हो गया.

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