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55 सारी यहूदी महासभा और प्रमुख याजक यीशु को मृत्यु दण्ड देने के लिये उसके विरोध में कोई प्रमाण ढूँढने का यत्न कर रहे थे पर ढूँढ नहीं पाये। 56 बहुतों ने उसके विरोध में झूठी गवाहियाँ दीं, पर वे गवाहियाँ आपस में विरोधी थीं।

57 फिर कुछ लोग खड़े हुए और उसके विरोध में झूठी गवाही देते हुए कहने लगे, 58 “हमने इसे यह कहते सुना है, ‘मनुष्यों के हाथों बने इस मन्दिर को मैं ध्वस्त कर दूँगा और फिर तीन दिन के भीतर दूसरा बना दूँगा जो हाथों से बना नहीं होगा।’” 59 किन्तु इसमें भी उनकी गवाहियाँ एक सी नहीं थीं।

60 तब उनके सामने महायाजक ने खड़े होकर यीशु से पूछा, “ये लोग तेरे विरोध में ये क्या गवाहियाँ दे रहे हैं? क्या उत्तर में तुझे कुछ नहीं कहना?” 61 इस पर यीशु चुप रहा। उसने कोई उत्तर नहीं दिया।

महायाजक ने उससे फिर पूछा, “क्या तू पवित्र परमेश्वर का पुत्र मसीह है?”

62 यीशु बोला, “मैं हूँ। और तुम मनुष्य के पुत्र को उस परम शक्तिशाली की दाहिनी ओर बैठे और स्वर्ग के बादलों में आते देखोगे।”

63 महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़ते हुए कहा, “हमें और गवाहों की क्या आवश्यकता है? 64 तुमने ये अपमानपूर्ण बातें कहते हुए इसे सुना, अब तुम्हारा क्या विचार है?”

उन सब ने उसे अपराधी ठहराते हुए कहा, “इसे मृत्यु दण्ड मिलना चाहिये।”

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