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पेतरॉस का नकारना

(मत्ति 26:69-75; मारक 14:66-72; योहन 18:25-27)

54 वे मसीह येशु को पकड़ कर महायाजक के घर पर ले गए. पेतरॉस दूर ही दूर से उनके पीछे-पीछे चलते रहे. 55 जब लोग आँगन में आग जलाए हुए बैठे थे, पेतरॉस भी उनके साथ बैठ गए. 56 एक सेविका ने पेतरॉस को आग की रोशनी में देखा और उनको एकटक देखते हुए कहा, “यह व्यक्ति भी उसके साथ था!”

57 पेतरॉस ने नकारते हुए कहा, “नहीं! हे स्त्री, मैं उसे नहीं जानता!”

58 कुछ समय बाद किसी अन्य ने उन्हें देख कर कहा.

“तुम भी तो उनमें से एक हो!”

“नहीं भाई, नहीं!” पेतरॉस ने उत्तर दिया.

59 लगभग एक घण्टे बाद एक अन्य व्यक्ति ने बल देते हुए कहा, “निस्सन्देह यह व्यक्ति भी उसके साथ था क्योंकि यह भी गलीलवासी है.”

60 पेतरॉस ने उत्तर दिया, “महोदय, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आप क्या कह रहे हैं!” जब वह यह कह ही रहे थे कि एक मुर्ग ने बाँग दी. 61 उसी समय प्रभु ने मुड़ कर पेतरॉस की ओर दृष्टि की और पेतरॉस को प्रभु की पहले कही हुई बात याद आ गई: “इसके पहले कि मुर्ग बाँग दे, तुम आज तीन बार मुझे नकार चुके होगे.” 62 पेतरॉस बाहर चले गए और फूट-फूट कर रोने लगे.

सिपाहियों द्वारा मसीह येशु का मज़ाक उड़ाया जाना

63 जिन्होंने मसीह येशु को पकड़ा था, वे उनको ठठ्ठों में उड़ाते हुए उन पर वार करते जा रहे थे. 64 उन्होंने मसीह येशु की आँखों पर पट्टी बांधी और उनसे पूछने लगे, “अपनी भविष्यवाणी से बता, किसने वार किया है तुझ पर?” 65 इसके अतिरिक्त वे उनकी निन्दा करते हुए उनके लिए अनेक अपमानजनक शब्द भी कहे जा रहे थे.

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