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मैं शारोन के केसर के पाटल सी हूँ।
    मैं घाटियों की कुमुदिनी हूँ।

पुरुष का वचन

हे मेरी प्रिये, अन्य युवतियों के बीच
    तुम वैसी ही हो मानों काँटों के बीच कुमुदिनी हो!

स्त्री का वचन

मेरे प्रिय, अन्य युवकों के बीच
    तुम ऐसे लगते हो जैसे जंगल के पेड़ों में कोई सेब का पेड़!

स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति

मुझे अपने प्रियतम की छाया में बैठना अच्छा लगता है;
    उसका फल मुझे खाने में अति मीठा लगता है।
मेरा प्रिय मुझको मधुशाला में ले आया;
    मेरा प्रेम उसका संकल्प था।
मैं प्रेम की रोगी हूँ
    अत: मुनक्का मुझे खिलाओ और सेबों से मुझे ताजा करो।
मेरे सिर के नीचे प्रियतम का बाँया हाथ है,
    और उसका दाँया हाथ मेरा आलिंगन करता है।

यरूशलेम की कुमारियों, कुंरगों और जंगली हिरणियों को साक्षी मान कर मुझ को वचन दो,
    प्रेम को मत जगाओ,
    प्रेम को मत उकसाओ, जब तक मैं तैयार न हो जाऊँ।

स्त्री ने फिर कहा

मैं अपने प्रियतम की आवाज़ सुनती हूँ।
    यह पहाड़ों से उछलती हुई
    और पहाड़ियों से कूदती हुई आती है।
मेरा प्रियतम सुन्दर कुरंग
    अथवा हरिण जैसा है।
देखो वह हमारी दीवार के उस पार खड़ा है,
    वह झंझरी से देखते हुए
    खिड़कियों को ताक रहा है।
10 मेरा प्रियतम बोला और उसने मुझसे कहा,
“उठो, मेरी प्रिये, हे मेरी सुन्दरी,
    आओ कहीं दूर चलें!
11 देखो, शीत ऋतु बीत गई है,
    वर्षा समाप्त हो गई और चली गई है।
12 धरती पर फूल खिलें हुए हैं।
    चिड़ियों के गाने का समय आ गया है!
    धरती पर कपोत की ध्वनि गुंजित है।
13 अंजीर के पेड़ों पर अंजीर पकने लगे हैं।
    अंगूर की बेलें फूल रही हैं, और उनकी भीनी गन्ध फैल रही है।
मेरे प्रिय उठ, हे मेरे सुन्दर,
    आओ कहीं दूर चलें!”
14 हे मेरे कपोत,
    जो ऊँचे चट्टानों के गुफाओं में
और पहाड़ों में छिपे हो,
    मुझे अपना मुख दिखा, मुझे अपनी ध्वनि सुना
क्योंकि तेरी ध्वनि मधुर
    और तेरा मुख सुन्दर है!

स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति

15 जो छोटी लोमड़ियाँ दाख के बगीचों को बिगाड़ती हैं,
    हमारे लिये उनको पकड़ो!
हमारे अंगूर के बगीचे अब फूल रहे हैं।

16 मेरा प्रिय मेरा है
    और मैं उसकी हूँ!
मेरा प्रिय अपनी भेड़ बकरियों को कुमुदिनियों के बीच चराता है,
17     जब तक दिन नहीं ढलता है
    और छाया लम्बी नहीं हो जाती है।
लौट आ, मेरे प्रिय,
    कुरंग सा बन अथवा हरिण सा बेतेर के पहाड़ों पर!