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क्या सब्त के दिन उपचार उचित है?

14 एक बार सब्त के दिन प्रमुख फरीसियों में से किसी के घर यीशु भोजन पर गया। उधर वे बड़ी निकटता से उस पर आँख रखे हुए थे। वहाँ उसके सामने जलोदर से पीड़ित एक व्यक्ति था। यीशु ने यहूदी धर्मशास्त्रियों और फरीसियों से पूछा, “सब्त के दिन किसी को निरोग करना उचित है या नहीं?” किन्तु वे चुप रहे। सो यीशु ने उस आदमी को लेकर चंगा कर दिया। और फिर उसे कहीं भेज दिया। फिर उसने उनसे पूछा, “यदि तुममें से किसी के पास अपना बेटा है या बैल है, वह कुँए में गिर जाता है तो क्या सब्त के दिन भी तुम उसे तत्काल बाहर नहीं निकालोगे?” वे इस पर उससे तर्क नहीं कर सके।

अपने को महत्त्व मत दो

क्योंकि यीशु ने यह देखा कि अतिथि जन अपने लिये बैठने को कोई सम्मानपूर्ण स्थान खोज रहे थे, सो उसने उन्हें एक दृष्टान्त कथा सुनाई। वह बोला: “जब तुम्हें कोई विवाह भोज पर बुलाये तो वहाँ किसी आदरपूर्ण स्थान पर मत बैठो। क्योंकि हो सकता है वहाँ कोई तुमसे अधिक बड़ा व्यक्ति उसके द्वारा बुलाया गया हो। फिर तुम दोनों को बुलाने वाला तुम्हारे पास आकर तुमसे कहेगा, ‘अपना यह स्थान इस व्यक्ति को दे दो।’ और फिर लज्जा के साथ तुम्हें सबसे नीचा स्थान ग्रहण करना पड़ेगा।

10 “सो जब तुम्हे बुलाया जाता है तो जाकर सबसे नीचे का स्थान ग्रहण करो जिससे जब तुम्हें आमंत्रित करने वाला आएगा तो तुमसे कहेगा, ‘हे मित्र, उठ ऊपर बैठ।’ फिर उन सब के सामने, जो तेरे साथ वहाँ अतिथि होंगे, तेरा मान बढ़ेगा। 11 क्योंकि हर कोई जो अपने आपको उठायेगा, उसे नीचा किया जायेगा और जो अपने आपको नीचा बनाएगा, उसे उठाया जायेगा।”

प्रतिफल

12 फिर जिसने उसे आमन्त्रित किया था, वह उससे बोला, “जब कभी तू कोई दिन या रात का भोज दे तो अपने मित्रों, भाई बंधों, संबधियों या धनी मानी पड़ोसियों को मत बुला क्योंकि बदले में वे तुझे बुलायेंगे और इस प्रकार तुझे उसका फल मिल जायेगा। 13 बल्कि जब तू कोई भोज दे तो दीन दुखियों, अपाहिजों, लँगड़ों और अंधों को बुला। 14 फिर क्योंकि उनके पास तुझे वापस लौटाने को कुछ नहीं है सो यह तेरे लिए आशीर्वाद बन जायेगा। इसका प्रतिफल तुझे धर्मी लोगों के जी उठने पर दिया जायेगा।”

बड़े भोज की दृष्टान्त कथा

(मत्ती 22:1-10)

15 फिर उसके साथ भोजन कर रहे लोगों में से एक ने यह सुनकर यीशु से कहा, “हर वह व्यक्ति धन्य है, जो परमेश्वर के राज्य में भोजन करता है!”

16 तब यीशु ने उससे कहा, “एक व्यक्ति किसी बड़े भोज की तैयारी कर रहा था, उसने बहुत से लोगों को न्योता दिया। 17 फिर दावत के समय जिन्हें न्योता दिया गया था, दास को भेजकर यह कहलवाया, ‘आओ क्योंकि अब भोजन तैयार है।’ 18 वे सभी एक जैसे आनाकानी करने लगे। पहले ने उससे कहा, ‘मैंने एक खेत मोल लिया है, मुझे जाकर उसे देखना है, कृपया मुझे क्षमा करें।’ 19 फिर दूसरे ने कहा, ‘मैंने पाँच जोड़ी बैल मोल लिये हैं, मैं तो बस उन्हें परखने जा ही रहा हूँ, कृपया मुझे क्षमा करें।’ 20 एक और भी बोला, ‘मैंने पत्नी ब्याही है, इस कारण मैं नहीं आ सकता।’

21 “सो जब वह सेवक लौटा तो उसने अपने स्वामी को ये बातें बता दीं। इस पर उस घर का स्वामी बहुत क्रोधित हुआ और अपने सेवक से कहा, ‘शीघ्र ही नगर के गली कूँचों में जा और दीन-हीनों, अपाहिजों, अंधों और लँगड़ों को यहाँ बुला ला।’

22 “उस दास ने कहा, ‘हे स्वामी, तुम्हारी आज्ञा पूरी कर दी गयी है किन्तु अभी भी स्थान बचा है।’ 23 फिर स्वामी ने सेवक से कहा, ‘सड़कों पर और खेतों की मेढ़ों तक जाओ और वहाँ से लोगों को आग्रह करके यहाँ बुला लाओ ताकि मेरा घर भर जाये। 24 और मैं तुमसे कहता हूँ जो पहले बुलाये गये थे उनमें से एक भी मेरे भोज को न चखें!’”

नियोजित बनो

(मत्ती 10:37-38)

25 यीशु के साथ अपार जनसमूह जा रहा था। वह उनकी तरफ़ मुड़ा और बोला, 26 “यदि मेरे पास कोई भी आता है और अपने पिता, माता, पत्नी और बच्चों अपने भाइयों और बहनों और यहाँ तक कि अपने जीवन तक से मुझ से अधिक प्रेम रखता है, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता! 27 जो अपना क्रूस उठाये बिना मेरे पीछे चलता है, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।

28 “यदि तुममें से कोई बुर्ज बनाना चाहे तो क्या वह पहले बैठ कर उसके मूल्य का, यह देखने के लिये कि उसे पूरा करने के लिये उसके पास काफ़ी कुछ है या नहीं, हिसाब-किताब नहीं लगायेगा? 29 नहीं तो वह नींव तो डाल देगा और उसे पूरा न कर पाने से, जिन्होंने उसे शुरू करते देखा, सब उसकी हँसी उड़ायेंगे और कहेंगे, 30 ‘अरे देखो इस व्यक्ति ने बनाना प्रारम्भ तो किया, पर यह उसे पूरा नहीं कर सका।’

31 “या कोई राजा ऐसा होगा जो किसी दूसरे राजा के विरोध में युद्ध छेड़ने जाये और पहले बैठ कर यह विचार न करे कि अपने दस हज़ार सैनिकों के साथ क्या वह बीस हज़ार सैनिकों वाले अपने विरोधी का सामना कर भी सकेगा या नहीं। 32 और यदि वह समर्थ नहीं होगा तो उसका विरोधी अभी मार्ग में ही होगा तभी वह अपना प्रतिनिधि मंडल भेज कर शांति-संधि का प्रस्ताव करेगा।

33 “तो फिर इसी प्रकार तुममें से कोई भी जो अपनी सभी सम्पत्तियों का त्याग नहीं कर देता, मेरा शिष्य नहीं हो सकता।

अपना प्रभाव मत खोओ

(मत्ती 5:13; मरकुस 9:50)

34 “नमक उत्तम है पर यदि वह अपना स्वाद खो दे तो उसे किसमें डाला जा सकता है। 35 न तो वह मिट्ठी के और न ही खाद की काम में आता है, लोग बस उसे यूँ ही फेंक देते हैं।

“जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले।”

जलोदर पीड़ित को स्वास्थ्यदान

14 एक अवसर पर जब मसीह येशु शब्बाथ पर फ़रीसियों के नायकों में से एक के घर भोजन करने गए, वे सभी उन्हें उत्सुकतापूर्वक देख रहे थे. वहाँ जलोदर रोग से पीड़ित एक व्यक्ति था. मसीह येशु ने फ़रीसियों और वकीलों से प्रश्न किया, “शब्बाथ पर किसी को स्वस्थ करना व्यवस्था के अनुसार है या नहीं?” किन्तु वे मौन रहे. इसलिए मसीह येशु ने उस रोगी पर हाथ रख उसे स्वस्थ कर दिया तथा उसे विदा किया.

तब मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “यह बताओ, यदि तुममें से किसी का पुत्र या बैल शब्बाथ पर गड्ढे में गिर जाए तो क्या तुम उसे तुरन्त ही बाहर न निकालोगे?” उनके पास इस प्रश्न का कोई उत्तर न था.

जब मसीह येशु ने यह देखा कि आमन्त्रित व्यक्ति अपने लिए किस प्रकार प्रधान आसन चुन लेते हैं, मसीह येशु ने उन्हें यह विचार दिया: “जब भी कोई तुम्हें विवाह के उत्सव में आमन्त्रित करे, तुम अपने लिए आदरयोग्य आसन न चुनना. यह सम्भव है कि उसने तुमसे अधिक किसी आदरयोग्य व्यक्ति को भी आमन्त्रित किया हो. तब वह व्यक्ति, जिसने तुम्हें और उसे दोनों ही को आमन्त्रित किया है, आ कर तुमसे कहे ‘तुम यह आसन इन्हें दे दो,’ तब लज्जित हो तुम्हें वह आसन छोड़ कर सबसे पीछे के आसन पर बैठना पड़े. 10 किन्तु जब तुम्हें कहीं आमन्त्रित किया जाए, जा कर सबसे साधारण आसन पर बैठ जाओ जिससे कि जब जिसने तुम्हें आमन्त्रित किया है तुम्हारे पास आए तो यह कहे, ‘मेरे मित्र, उठो और उस ऊँचे आसन पर बैठो.’ इस पर अन्य सभी आमन्त्रित अतिथियों के सामने तुम आदरयोग्य साबित होगे. 11 हर एक, जो स्वयं को बड़ा बनाता है, छोटा बना दिया जाएगा तथा जो स्वयं को छोटा बना देता है, बड़ा किया जाएगा.”

12 तब फिर मसीह येशु ने अपने न्योता देनेवाले से कहा, “जब तुम दिन या रात के भोजन पर किसी को आमन्त्रित करो तो अपने मित्रों, भाई-बन्धुओं, परिजनों या धनवान पड़ोसियों को आमन्त्रित मत करो; ऐसा न हो कि वे भी तुम्हें आमन्त्रित करें और तुम्हें बदला मिल जाए. 13 किन्तु जब तुम भोज का आयोजन करो तो निर्धनों, अपंगों, लंगड़ों तथा अंधों को आमन्त्रित करो. 14 तब तुम परमेश्वर की कृपा के भागी बनोगे. वे लोग तुम्हारा बदला नहीं चुका सकते. बदला तुम्हें धर्मियों के दोबारा जी उठने के अवसर पर प्राप्त होगा.”

महोत्सव के आमन्त्रण का दृष्टान्त

15 यह सुन वहाँ आमन्त्रितों में से एक ने मसीह येशु से कहा, “धन्य है वह, जो परमेश्वर के राज्य के भोज में सम्मिलित होगा.”

16 यह सुन मसीह येशु ने कहा, “किसी व्यक्ति ने एक बड़ा भोज का आयोजन किया और अनेकों को आमन्त्रित किया. 17 भोज तैयार होने पर उसने अपने सेवकों को इस सूचना के साथ आमन्त्रितों के पास भेजा, ‘आ जाइए, सब कुछ तैयार है.’

18 “किन्तु वे सभी बहाने बनाने लगे. एक ने कहा, ‘मैंने भूमि मोल ली है और आवश्यक है कि मैं जा कर उसका निरीक्षण करूँ. कृपया मुझे क्षमा करें.’

19 “दूसरे ने कहा, ‘मैंने अभी-अभी पाँच जोड़े बैल मोल लिए हैं और मैं उन्हें परखने के लिए बस निकल ही रहा हूँ. कृपया मुझे क्षमा करें.’

20 “एक और अन्य ने कहा, ‘अभी, इसी समय मेरा विवाह हुआ है इसलिए मेरा आना सम्भव नहीं.’

21 “सेवक ने लौट कर अपने स्वामी को यह सूचना दे दी. अत्यन्त गुस्से में घर के स्वामी ने सेवक को आज्ञा दी, ‘तुरन्त नगर की गलियों-चौराहों में जाओ और निर्धनों, अपंगों, लंगड़ों और अंधों को ले आओ.’

22 “सेवक ने लौट कर सूचना दी, ‘स्वामी, आपके आदेशानुसार काम पूरा हो चुका है किन्तु अब भी कुछ जगह खाली है.’

23 “तब घर के स्वामी ने उसे आज्ञा दी, ‘अब नगर के बाहर के मार्गों से लोगों को यहाँ आने के लिए विवश करो कि मेरा भवन भर जाए. 24 यह निश्चित है कि वे, जिन्हें आमन्त्रित किया गया था, उनमें से एक भी मेरे भोज को चख न सकेगा.’”

शिष्यता का दाम

25 एक बड़ी भीड़ मसीह येशु के साथ-साथ चल रही थी. मसीह येशु ने मुड़ कर उनसे कहा, 26 “यदि कोई मेरे पास आता है और अपने माता-पिता, पत्नी, सन्तान तथा भाई-बहनों को, यहाँ तक कि स्वयं अपने जीवन को, मुझसे अधिक महत्व देता है, मेरा चेला नहीं हो सकता. 27 जो कोई अपना क्रूस उठाए बिना मेरे पीछे हो लेता है, वह मेरा चेला हो ही नहीं सकता.

28 “तुममें ऐसा कौन है, जो भवन निर्माण करना चाहे और पहले बैठ कर खर्च का अनुमान न करे कि उसके पास निर्माण काम पूरा करने के लिए पर्याप्त राशि है भी या नहीं? 29 अन्यथा यदि वह नींव डाल ले और काम पूरा न कर पाए तो देखनेवालों के ठठ्ठों का कारण बन जाएगा: 30 ‘देखो-देखो! इसने काम प्रारम्भ तो कर दिया किन्तु अब समाप्त नहीं कर पा रहा!’

31 “या ऐसा कौन राजा होगा, जो दूसरे पर आक्रमण करने के पहले यह विचार न करेगा कि वह अपने दस हज़ार सैनिकों के साथ अपने विरुद्ध बीस हज़ार की सेना से टक्कर लेने में समर्थ है भी या नहीं? 32 यदि नहीं, तो जब शत्रु-सेना दूर ही है, वह अपने दूतों को भेज कर उसके सामने शान्ति-प्रस्ताव रखेगा. 33 इसी प्रकार तुममें से कोई भी मेरा चेला नहीं हो सकता यदि वह अपना सब कुछ त्याग न कर दे.

34 “नमक उत्तम है किन्तु यदि नमक ही स्वादहीन हो जाए तो किस वस्तु से उसका स्वाद लौटाया जा सकेगा? 35 तब वह न तो भूमि के लिए किसी उपयोग का रह जाता है और न खाद के रूप में किसी उपयोग का. उसे फेंक दिया जाता है.

“जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले.”