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पाँच हजार से अधिक को भोजन

(मत्ती 14:13-21; मरकुस 6:30-44; लूका 9:10-17)

इसके बाद यीशु गलील की झील (यानी तिबिरियास) के उस पार चला गया। और उसके पीछे-पीछे एक अपार भीड़ चल दी क्योंकि उन्होंने रोगियों को स्वास्थ्य प्रदान करने में अद्भुत चिन्ह देखे थे। यीशु पहाड़ पर चला गया और वहाँ अपने अनुयायियों के साथ बैठ गया। यहूदियों का फ़सह पर्व निकट था।

जब यीशु ने आँख उठाई और देखा कि एक विशाल भीड़ उसकी तरफ़ आ रही है तो उसने फिलिप्पुस से पूछा, “इन सब लोगों को भोजन कराने के लिए रोटी कहाँ से खरीदी जा सकती है?” यीशु ने यह बात उसकी परीक्षा लेने के लिए कही थी क्योंकि वह तो जानता ही था कि वह क्या करने जा रहा है।

फिलिप्पुस ने उत्तर दिया, “दो सौ चाँदी के सिक्कों से भी इतनी रोटियाँ नहीं ख़रीदी जा सकती हैं जिनमें से हर आदमी को एक निवाले से थोड़ा भी ज़्यादा मिल सके।”

यीशु के एक दूसरे शिष्य शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने कहा, “यहाँ एक छोटे लड़के के पास पाँच जौ की रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं पर इतने सारे लोगों में इतने से क्या होगा।”

10 यीशु ने उत्तर दिया, “लोगों को बैठाओ।” उस स्थान पर अच्छी खासी घास थी इसलिये लोग वहाँ बैठ गये। ये लोग लगभग पाँच हजार पुरुष थे। 11 फिर यीशु ने रोटियाँ लीं और धन्यवाद देने के बाद जो वहाँ बैठे थे उनको परोस दीं। इसी तरह जितनी वे चाहते थे, उतनी मछलियाँ भी उन्हें दे दीं।

12 जब उन के पेट भर गये यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो टुकड़े बचे हैं, उन्हें इकटठा कर लो ताकि कुछ बेकार न जाये।” 13 फिर शिष्यों ने लोगों को परोसी गयी जौ की उन पाँच रोटियों के बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भरीं।

14 यीशु के इस आश्चर्यकर्म को देखकर लोग कहने लगे, “निश्चय ही यह व्यक्ति वही नबी है जिसे इस जगत में आना है।”

15 यीशु यह जानकर कि वे लोग आने वाले हैं और उसे ले जाकर राजा बनाना चाहते हैं, अकेला ही पर्वत पर चला गया।

यीशु का पानी पर चलना

(मत्ती 14:22-27; मरकुस 6:45-52)

16 जब शाम हुई उसके शिष्य झील पर गये 17 और एक नाव में बैठकर वापस झील के पार कफरनहूम की तरफ़ चल पड़े। अँधेरा काफ़ी हो चला था किन्तु यीशु अभी भी उनके पास नहीं लौटा था। 18 तूफ़ानी हवा के कारण झील में लहरें तेज़ होने लगी थीं। 19 जब वे कोई पाँच-छः किलोमीटर आगे निकल गये, उन्होंने देखा कि यीशु झील पर चल रहा है और नाव के पास आ रहा है। इससे वे डर गये। 20 किन्तु यीशु ने उनसे कहा, “यह मैं हूँ, डरो मत।” 21 फिर उन्होंने तत्परता से उसे नाव में चढ़ा लिया, और नाव शीघ्र ही वहाँ पहुँच गयी जहाँ उन्हें जाना था।

यीशु की ढूँढ

22 अगले दिन लोगों की उस भीड़ ने जो झील के उस पार रह गयी थी, देखा कि वहाँ सिर्फ एक नाव थी और अपने चेलों के साथ यीशु उस पर सवार नहीं हुआ था, बल्कि उसके शिष्य ही अकेले रवाना हुए थे। 23 तिबिरियास की कुछ नाव उस स्थान के पास आकर रुकीं, जहाँ उन्होंने प्रभु को धन्यवाद देने के बाद रोटी खायी थी। 24 इस तरह जब उस भीड़ ने देखा कि न तो वहाँ यीशु है और न ही उसके शिष्य, तो वे नावों पर सवार हो गये और यीशु को ढूँढते हुए कफरनहूम की तरफ चल पड़े।

यीशु, जीवन की रोटी

25 जब उन्होंने यीशु को झील के उस पार पाया तो उससे कहा, “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?”

26 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ, तुम मुझे इसलिए नहीं खोज रहे हो कि तुमने आश्चर्यपूर्ण चिन्ह देखे हैं बल्कि इसलिए कि तुमने भर पेट रोटी खायी थी। 27 उस खाने के लिये परिश्रम मत करो जो सड़ जाता है बल्कि उसके लिये जतन करो जो सदा उत्तम बना रहता है और अनन्त जीवन देता है, जिसे तुम्हें मानव-पुत्र देगा। क्योंकि परमपिता परमेश्वर ने अपनी मोहर उसी पर लगायी है।”

28 लोगों ने उससे पूछा, “जिन कामों को परमेश्वर चाहता है, उन्हें करने के लिए हम क्या करें?”

29 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “परमेश्वर जो चाहता है, वह यह है कि जिसे उसने भेजा है उस पर विश्वास करो।”

30 लोगों ने पूछा, “तू कौन से आश्चर्य चिन्ह प्रकट करेगा जिन्हें हम देखें और तुझमें विश्वास करें? तू क्या कार्य करेगा? 31 हमारे पूर्वजों ने रेगिस्तान में मन्ना खाया था जैसा कि पवित्र शास्त्रों में लिखा है। उसने उन्हें खाने के लिए, स्वर्ग से रोटी दी।”

32 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ वह मूसा नहीं था जिसने तुम्हें खाने के लिए स्वर्ग से रोटी दी थी बल्कि यह मेरा पिता है जो तुम्हें स्वर्ग से सच्ची रोटी देता है। 33 वह रोटी जिसे परम पिता देता है वह स्वर्ग से उतरी है और जगत को जीवन देती है।”

34 लोगों ने उससे कहा, “हे प्रभु, अब हमें वह रोटी दे और सदा देता रह।”

35 तब यीशु ने उनसे कहा, “मैं ही वह रोटी हूँ जो जीवन देती है। जो मेरे पास आता है वह कभी भूखा नहीं रहेगा और जो मुझमें विश्वास करता है कभी भी प्यासा नहीं रहेगा। 36 मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ कि तुमने मुझे देख लिया है, फिर भी तुम मुझमें विश्वास नहीं करते। हर वह व्यक्ति जिसे परम पिता ने मुझे सौंपा है, मेरे पास आयेगा। 37 जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं लौटाऊँगा। 38 क्योंकि मैं स्वर्ग से अपनी इच्छा के अनुसार काम करने नहीं आया हूँ बल्कि उसकी इच्छा पूरी करने आया हूँ जिसने मुझे भेजा है। 39 और मुझे भेजने वाले की यही इच्छा है कि मैं जिनको परमेश्वर ने मुझे सौंपा है, उनमें से किसी को भी न खोऊँ और अन्तिम दिन उन सबको जिला दूँ। 40 यही मेरे परम पिता की इच्छा है कि हर वह व्यक्ति जो पुत्र को देखता है और उसमें विश्वास करता है, अनन्त जीवन पाये और अंतिम दिन मैं उसे जिला उठाऊँगा।”

41 इस पर यहूदियों ने यीशु पर बड़बड़ाना शुरू किया क्योंकि वह कहता था, “वह रोटी मैं हूँ जो स्वर्ग से उतरी है।” 42 और उन्होंने कहा, “क्या यह यूसुफ का बेटा यीशु नहीं है, क्या हम इसके माता-पिता को नहीं जानते हैं। फिर यह कैसे कह सकता है, ‘यह स्वर्ग से उतरा है’?”

43 उत्तर में यीशु ने कहा, “आपस में बड़बड़ाना बंद करो, 44 मेरे पास तब तक कोई नहीं आ सकता जब तक मुझे भेजने वाला परम पिता उसे मेरे प्रति आकर्षित न करे। मैं अंतिम दिन उसे पुनर्जीवित करूँगा। 45 नबियों ने लिखा है, ‘और वे सब परमेश्वर के द्वारा सिखाए हुए होंगे।’(A) हर वह व्यक्ति जो परम पिता की सुनता है और उससे सीखता है मेरे पास आता है। 46 किन्तु वास्तव में परम पिता को सिवाय उसके जिसे उसने भेजा है, किसी ने नहीं देखा। परम पिता को बस उसी ने देखा है।

47 “मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ, जो विश्वासी है, वह अनन्त जीवन पाता है। 48 मैं वह रोटी हूँ जो जीवन देती है। 49 तुम्हारे पुरखों ने रेगिस्तान में मन्ना खाया था तो भी वे मर गये। 50 जबकि स्वर्ग से आयी इस रोटी को यदि कोई खाए तो मरेगा नहीं। 51 मैं ही वह जीवित रोटी हूँ जो स्वर्ग से उतरी है। यदि कोई इस रोटी को खाता है तो वह अमर हो जायेगा। और वह रोटी जिसे मैं दूँगा, मेरा शरीर है। इसी से संसार जीवित रहेगा।”

52 फिर यहूदी लोग आपस में यह कहते हुए बहस करने लगे, “यह अपना शरीर हमें खाने को कैसे दे सकता है?”

53 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का शरीर नहीं खाओगे और उसका लहू नहीं पिओगे तब तक तुममें जीवन नहीं होगा। 54 जो मेरा शरीर खाता रहेगा और मेरा लहू पीता रहेगा, अनन्त जीवन उसी का है। अन्तिम दिन मैं उसे फिर जीवित करूँगा। 55 मेरा शरीर सच्चा भोजन है और मेरा लहू ही सच्चा पेय है। 56 जो मेरे शरीर को खाता रहता है, और लहू को पीता रहता है वह मुझमें ही रहता है, और मैं उसमें।

57 “बिल्कुल वैसे ही जैसे जीवित पिता ने मुझे भेजा है और मैं परम पिता के कारण ही जीवित हूँ, उसी तरह वह जो मुझे खाता रहता है मेरे ही कारण जीवित रहेगा। 58 यही वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरी है। यह वैसी नहीं है जैसी हमारे पूर्वजों ने खायी थी। और बाद में वे मर गये थे। जो इस रोटी को खाता रहेगा, सदा के लिये जीवित रहेगा।”

59 यीशु ने ये बातें कफरनहूम के आराधनालय में उपदेश देते हुए कहीं।

अनन्त जीवन की शिक्षा

60 यीशु के बहुत से अनुयायियों ने इन बातों को सुनकर कहा, “यह शिक्षा बहुत कठिन है, इसे कौन सुन सकता है?”

61 यीशु को अपने आप ही पता चल गया था कि उसके अनुयायियों को इसकी शिकायत है। इसलिये वह उनसे बोला, “क्या तुम इस शिक्षा से परेशान हो? 62 यदि तुम मनुष्य के पुत्र को उपर जाते देखो जहाँ वह पहले था तो क्या करोगे? 63 आत्मा ही है जो जीवन देता है, देह का कोई उपयोग नहीं है। वचन, जो मैंने तुमसे कहे हैं, आत्मा है और वे ही जीवन देते हैं। 64 किन्तु तुममें कुछ ऐसे भी हैं जो विश्वास नहीं करते।” (यीशु शुरू से ही जानता था कि वे कौन हैं जो विश्वासी नहीं हैं और वह कौन है जो उसे धोखा देगा।) 65 यीशु ने आगे कहा, “इसीलिये मैंने तुमसे कहा है कि मेरे पास तब तक कोई नहीं आ सकता जब तक परम पिता उसे मेरे पास आने की अनुमति नहीं दे देता।”

66 इसी कारण यीशु के बहुत से अनुयायी वापस चले गये। और फिर कभी उसके पीछे नहीं चले।

67 फिर यीशु ने अपने बारह शिष्यों से कहा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?”

68 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, हम किसके पास जायेंगे? वे वचन तो तेरे पास हैं जो अनन्त जीवन देते हैं। 69 अब हमने यह विश्वास कर लिया है और जान लिया है कि तू ही वह पवित्रतम है जिसे परमेश्वर ने भेजा है।”

70 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या तुम बारहों को मैंने नहीं चुना है? फिर भी तुममें से एक शैतान है।” 71 वह शमौन इस्करियोती के बेटे यहूदा के बारे में बात कर रहा था क्योंकि वह यीशु के खिलाफ़ होकर उसे धोखा देने वाला था। यद्यपि वह भी उन बारह शिष्यों में से ही एक था।

पाँच हज़ार को भोजन

(मत्ति 14:13-21; मारक 6:30-44; लूकॉ 9:10-17)

इन बातों के बाद मसीह येशु गलील अर्थात् तिबेरियॉस झील के उस पार चले गए. उनके द्वारा रोगियों को स्वास्थ्यदान के अद्भुत चिह्नों से प्रभावित एक बड़ी भीड़ उनके साथ हो ली. मसीह येशु पर्वत पर जा कर वहाँ अपने शिष्यों के साथ बैठ गए. यहूदियों का फ़सह उत्सव पास था.

जब मसीह येशु ने बड़ी भीड़ को अपनी ओर आते देखा तो फ़िलिप्पॉस से पूछा, “इन सबको खिलाने के लिए हम भोजन कहाँ से मोल लेंगे?” मसीह येशु ने यह प्रश्न उन्हें परखने के लिए किया था क्योंकि वह जानते थे कि वह क्या करने पर थे.

फ़िलिप्पॉस ने उत्तर दिया, “दो सौ दीनार की रोटियां भी उनके लिए पर्याप्त नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल पाए.”

मसीह येशु के शिष्य शिमोन पेतरॉस के भाई आन्द्रेयास ने उन्हें सूचित किया, “यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटियां और दो मछलियां हैं किन्तु उनसे इतने लोगों का क्या होगा?”

10 मसीह येशु ने कहा, “लोगों को बैठा दो” और वे सब, जिनमें पुरुषों की ही संख्या पाँच हज़ार थी, घनी घास पर बैठ गए. 11 तब मसीह येशु ने रोटियां लेकर धन्यवाद दिया और उनकी ज़रूरत के अनुसार बांट दीं और उसी प्रकार मछलियां भी.

12 जब वे सब तृप्त हो गए तो मसीह येशु ने अपने शिष्यों को आज्ञा दी, “शेष टुकड़ों को इकट्ठा कर लो कि कुछ भी नाश न हो,” 13 उन्होंने जौ की उन पाँच रोटियों के शेष टुकड़े इकट्ठा किए, जिनसे बारह टोकरे भर गए. 14 लोगों ने इस अद्भुत चिह्न को देख कर कहा, “निस्सन्देह यह वही भविष्यद्वक्ता हैं, संसार जिनकी प्रतीक्षा कर रहा है.” 15 जब मसीह येशु को यह मालूम हुआ कि लोग उन्हें जबरदस्ती राजा बनाने के उद्धेश्य से ले जाना चाहते हैं तो वह फिर से पर्वत पर अकेले चले गए.

मसीह येशु का जल सतह पर चलना

(मत्ति 14:22-33; मारक 6:45-52)

16 जब सन्ध्या हुई तो मसीह येशु के शिष्य झील के तट पर उतर गए. 17 अन्धेरा हो चुका था और मसीह येशु अब तक उनके पास नहीं पहुँचे थे. उन्होंने नाव पर सवार हो कर गलील झील के दूसरी ओर कफ़रनहूम नगर के लिए प्रस्थान किया. 18 उसी समय तेज़ हवा के कारण झील में लहरें बढ़ने लगीं. 19 नाव को लगभग पाँच किलोमीटर खेने के बाद शिष्यों ने मसीह येशु को जल सतह पर चलते और नाव की ओर आते देखा. यह देख कर वे भयभीत हो गए. 20 मसीह येशु ने उनसे कहा, “भयभीत मत हो, मैं हूँ.” 21 यह सुन शिष्य मसीह येशु को नाव में चढ़ाने को तैयार हो गए. इसके बाद नाव उस स्थान पर पहुँच गई जहाँ उन्हें जाना था.

मसीह येशु—जीवन-रोटी

22 अगले दिन झील के उस पार रह गई भीड़ को मालूम हुआ कि वहाँ केवल एक छोटी नाव थी और मसीह येशु शिष्यों के साथ उसमें नहीं गए थे—केवल शिष्य ही उसमें दूसरे पार गए थे. 23 तब तिबेरियास नगर से अन्य नावें उस स्थान पर आईं, जहाँ प्रभु ने बड़ी भीड़ को भोजन कराया था. 24 जब भीड़ ने देखा कि न तो मसीह येशु वहाँ हैं और न ही उनके शिष्य, तो वे मसीह येशु को खोजते हुए नावों द्वारा कफ़रनहूम नगर पहुँच गए.

25 झील के इस पार मसीह येशु को पा कर उन्होंने उनसे पूछा, “रब्बी, आप यहाँ कब पहुँचे?”

26 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: तुम मुझे इसलिए नहीं खोज रहे कि तुमने अद्भुत चिह्न देखे हैं परन्तु इसलिए कि तुम रोटियां खा कर तृप्त हुए हो. 27 उस भोजन के लिए मेहनत मत करो, जो नाशमान है परन्तु उसके लिए, जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जो मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा क्योंकि पिता अर्थात् परमेश्वर ने समर्थन के साथ मात्र उसी को यह अधिकार सौंपा है.”

28 इस पर उन्होंने मसीह येशु से पूछा, “हम से परमेश्वर की इच्छा क्या है?”

29 “यह कि तुम परमेश्वर के भेजे हुए पर विश्वास करो,” मसीह येशु ने उत्तर दिया.

30 इस पर उन्होंने मसीह येशु से दोबारा पूछा, “आप ऐसा कौन सा अद्भुत चिह्न दिखा सकते हैं कि हम आप में विश्वास करें? क्या है वह काम? 31 हमारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया; पवित्रशास्त्र के अनुसार: भोजन के लिए परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग से रोटी दी.”

32 इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: स्वर्ग से वह रोटी तुम्हें मोशेह ने नहीं दी; मेरे पिता ही हैं, जो तुम्हें स्वर्ग से वास्तविक रोटी देते हैं. 33 क्योंकि परमेश्वर की रोटी वह है, जो स्वर्ग से आती है, और संसार को जीवन प्रदान करती है.”

34 यह सुन कर उन्होंने विनती की, “प्रभु, अब से हमें यही रोटी दें.”

35 इस पर मसीह येशु ने घोषणा की, “मैं ही हूँ वह जीवन की रोटी. जो मेरे पास आएगा, वह भूखा न रहेगा और जो मुझ में विश्वास करेगा, कभी प्यासा न रहेगा. 36 मैं तुमसे पहले भी कह चुका हूँ कि तुम मुझे देख कर भी मुझ में विश्वास नहीं करते. 37 वे सभी, जो पिता ने मुझे दिए हैं, मेरे पास आएंगे और हर एक, जो मेरे पास आता है, मैं उसको कभी भी न छोड़ूँगा. 38 मैं स्वर्ग से अपनी इच्छा पूरी करने नहीं, अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिए आया हूँ. 39 मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उन्होंने मुझे सौंपा है, उसमें से मैं कुछ भी न खोऊँ परन्तु अन्तिम दिन में उसे फिर से जीवित करूँ. 40 क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है कि हर एक, जो पुत्र को अपनाकर उस में विश्वास करे, वह अनन्त काल का जीवन प्राप्त करे तथा मैं उसे अन्तिम दिन में फिर से जीवित करूँ.”

41 मसीह येशु का यह दावा सुन कर: “स्वर्ग से उतरी रोटी मैं ही हूँ,” यहूदी कुड़कुड़ाने लगे 42 और आपस में मन्त्रणा करने लगे, “क्या यह योसेफ़ का पुत्र येशु नहीं, जिसके माता-पिता को हम जानते हैं? तो अब यह कैसे कह रहा है कि यह स्वर्ग से आया है?”

43 यह जान कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “कुड़कुड़ाओ मत,” 44 “कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक मेरे भेजने वाले—पिता—उसे अपनी ओर खींच न लें. मैं उसे अन्तिम दिन में फिर से जीवित करूँगा. 45 भविष्यद्वक्ताओं के अभिलेख में यह लिखा हुआ है: वे सब परमेश्वर द्वारा सिखाए हुए होंगे, अतः हर एक, जिसने पिता परमेश्वर को सुना और उनसे सीखा है, मेरे पास आता है. 46 किसी ने पिता परमेश्वर को नहीं देखा सिवाय उसके, जो पिता परमेश्वर से है, केवल उसी ने उन्हें देखा है. 47 मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: अनन्त काल का जीवन उसी का है, जो विश्वास करता है. 48 मैं ही हूँ जीवन की रोटी. 49 जंगल में तुम्हारे पूर्वजों ने मन्ना खाया फिर भी उनकी मृत्यु हो गई. 50 मैं ही स्वर्ग से उतरी रोटी हूँ कि जो कोई इसे खाए, उसकी मृत्यु न हो. 51 मैं ही स्वर्ग से उतरी जीवन की रोटी हूँ. जो कोई यह रोटी खाता है, वह हमेशा जीवित रहेगा. जो रोटी मैं दूँगा, वह संसार के जीवन के लिए भेंट मेरा शरीर है.”

52 यह सुन कर यहूदी आपस में विवाद करने लगे, “यह व्यक्ति कैसे हमें अपना शरीर खाने के लिए दे सकता है?”

53 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का शरीर न खाओ और उसका लहू न पियो, तुम में जीवन नही. 54 अनन्त काल का जीवन उसी का है, जो मेरा शरीर खाता और मेरा लहू पीता है; अन्तिम दिन मैं उसे फिर से जीवित करूँगा. 55 मेरा शरीर ही वास्तविक भोजन और मेरा लहू ही वास्तविक पेय है. 56 जो मेरा शरीर खाता और मेरा लहू पीता है, वही है, जो मुझमें बना रहता है और मैं उसमें. 57 जैसे जीवन्त पिता परमेश्वर ने मुझे भेजा है और मैं पिता के कारण जीवित हूँ, वैसे ही वह भी, जो मुझे ग्रहण करता है, मेरे कारण जीवित रहेगा. 58 यह वह रोटी है, जो स्वर्ग से उतरी हुई है; वैसी नहीं, जो पूर्वजों ने खाई और फिर भी उनकी मृत्यु हो गई; परन्तु वह, जो यह रोटी खाता है, हमेशा जीवित रहेगा.” 59 मसीह येशु ने ये बातें कफ़रनहूम नगर के यहूदी सभागृह में शिक्षा देते हुए बताईं.

अनेक शिष्यों द्वारा मसीह येशु का त्याग

60 यह बातें सुन कर उनके अनेक शिष्यों ने कहा, “बहुत कठोर है यह शिक्षा. कौन इसे स्वीकार कर सकता है?”

61 अपने चेलों की बड़बड़ाहट का अहसास होने पर मसीह येशु ने कहा, “क्या यह तुम्हारे लिए ठोकर का कारण है? 62 तुम तब क्या करोगे जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊपर स्वर्ग में जाते देखोगे, जहाँ वह पहले था? 63 आत्मा ही हैं, जो शरीर को जीवन देती है. केवल शरीर का कुछ महत्व नहीं. जो शब्द मैंने तुमसे कहे हैं, वे आत्मा हैं और जीवन भी. 64 फिर भी तुम में कुछ हैं, जो मुझमें विश्वास नहीं करते.” मसीह येशु प्रारम्भ से जानते थे कि कौन हैं, जो उनमें विश्वास नहीं करेंगे और कौन है वह, जो उनके साथ धोखा करेगा. 65 तब मसीह येशु ने आगे कहा, “इसीलिए मैंने तुमसे यह कहा कि कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक पिता उसे मेरे पास न आने दें.”

66 इसके परिणामस्वरूप मसीह येशु के अनेक चेले पीछे हट गए और उनके पीछे चलना छोड़ दिया.

पेतरॉस द्वारा अपने विश्वासमत का प्रकाशन

67 यह देख मसीह येशु ने अपने बारह शिष्यों से अभिमुख हो उनसे पूछा, “कहीं तुम भी तो लौट जाना नहीं चाहते?”

68 शिमोन पेतरॉस ने उत्तर दिया, “प्रभु, हम किसके पास जाएँ? अनन्त काल के जीवन की बातें तो आप ही के पास हैं. 69 हमने विश्वास किया और जान लिया है कि आप ही परमेश्वर के पवित्र जन हैं.”

70 मसीह येशु ने उनसे कहा, “क्या स्वयं मैंने तुम बारहों को नहीं चुना? यह होने पर भी तुम में से एक इबलीस है.” 71 उनका इशारा शिमोन के पुत्र कारियोतवासी यहूदाह की ओर था क्योंकि उन बारह शिष्यों में से वही मसीह येशु के साथ धोखा करने पर था.