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हे यहोवा, तू ऍतना दूर काहे खड़ा रहत ह?
    कि संकट मँ पड़ा लोग तोहका निहारि नाहीं पउतेन।
अहंकारी दुट्ठ जन दुर्बल क दुःख देत हीं।
    उ पचे आपन सड़यन्त्र क रचत रहत हीं।
दुट्ठ जन ओन चिजियन पइ घमण्ड करत हीं, जेनकर ओनका गहरी इच्छा अहइ
अउ लालची मनई परमेस्सर क कोसत रहत हीं।
    इ तरह दुट्ठ देखाँवत हीं कि उ पचे यहोवा स घिना करत रहत हीं।
दुट्ठ लोग ऍतना घमण्डी होत हीं कि उ पचे परमेस्सर क पाछे नाहीं चल सकतेन।
    उ पचे खराब खराब जोजना रचत हीं।
    उ पचे अइसा करम करत हीं, जइसे परमेस्सर क कउनो अस्तित्व ही न बाटइ।
दुट्ठ जन सदा कुटिल करम करत हीं।
    उ पचे परमेस्सर क विवेक स पूरी व्यवस्था अउ सिच्छन पइ धियान नाहीं देतेन।
    हे परमेस्सर, तोहार सबहिं दुस्मन तोहरे उपदेसन क उपेच्छा करत हीं।
उ पचे सोचत हीं, जइसेन कउनो बुरी बात ओनके संग नाहीं घटि जाइ।
    उ पचे कहत रहत हीं, “हम पचे मउज मँ रहब अउ कबहुँ भी दण्डित नाहीं होब।”
अइसेन दुट्ठ क मुँह सदा साप देत रहत ह।
    उ पचे दूसर जन क निन्दा करत हीं अउर काम मँ लिआवइ क सदा ही बुरी बुरी जोजना रचत रहत हीं।
अइसे लोग गुप्त ठउरन मँ लुकान रहत हीं,
    अउर लोगन क फँसावइ क प्रतीच्छा करत हीं।
    उ पचे लोगन क नस्कान पहुँचावइ खातिर लुकान रहत हीं अउ निरपराधी लोगन क हत्या करत हीं।
दुट्ठ जन सिंह क नाई होत हीं जउन ओन गोरूअन क धरइ क घात मँ रहत हीं।
    जेनका उ पचे खाइ जइहीं।
दुट्ठ जन दीन लोगन पइ मार करत हीं
    ओनकर बनाए भए जालि मँ बेसहारा दीन फँसि जात हीं।
10 दुट्ठ जन बार-बार दीनन पइ घात करत
    अउ ओनका दुःख देत ह।
11 एह बरे दीन जन सोचइ लागत हीं, “परमेस्सर हमका बिसराइ ही दिहस।
    हमसे तउ परमेस्सर सदा-सदा बरे दूर होइ गवा बाटइ।
    उन कछू भी मोरे संग घटत अहइ, ओहसे परमेस्सर दृस्टि फेरि लिहस ह!”

12 हे यहोवा, उठा अउर कछू तउ करा!
    हे परमेस्सर, ओन दुट्ठ जनन क आपन हाथ उठाइके सजा द्या!
    अउर ऍन दीन दुःखियन क जिन बिसरा।

13 दुट्ठ जन काहे परमेस्सर क खिलाफ होत हीं?
    काहेकि उ पचे सोचत हीं कि परमेस्सर ओनका कबहुँ नाहीं दण्डित करी।
14 हे यहोवा, तू ही अहइ जउन बुरे लोगन दुआरा कीन्ह भावा अत्याचार अउर बुरे कामन क कउनो स भी जियादा लखत ह।
    तू एकर बारे मँ कछू कदम उठा।
दुःखन स घिरा लोग मदद माँगइ तोहरे लगे आवत हीं।
    हे यहोवा, सिरिफ तू ही अनाथ लोगन क सहायक अहा, एह बरे ओनकर रच्छा करा।

15 हे यहोवा, दुट्ठ जनन क तू नस्ट कइ द्या।
16 तू ओनका आपन धरती स
    ढकेलिके बाहेर करा!
17 हे यहोवा, दीन दुःखी लोग जउन चाहत हीं उ तू सुनि लिहा।
    ओनकर पराथना सुना अउर ओनका पूरा करा जेनका उ पचे माँगत हीं।
18 हे यहोवा, अनाथ गदेलन क तू रच्छा करा।
    दुःखी लोगन क अउर जियादा दुःख जिन पावइ द्या।
    दुट्ठ लोगन क तू ऍतना भयभीत कइ द्या कि उ पचे हिआँ न टिक पावइँ।