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19 उ गरीब मनइ ओन व्यक्ति स बेहतर अहइ जउन झूट बोलत ह अउ मूरख अहइ।

बिना गियान क उत्साह राखब नीक नाहीं अहइ एहसे उतावली मँ गलती होइ जात ह।

मनई आपन बेवकूफी स आपन जिन्नगी बिगाड़ लेत ह, मुला उ यहोवा क दोखी ठहरावत ह।

धन स बहोत सारे मीत बन जात हीं, मुला गरीब जन क ओकर मीत भी तजि जात ह।

लबार गवाह बगैर सजा पाए नाहीं बची अउर जउन झूठ उगलत रहत ह, छूटइ नाहीं पाई।

बहोत स लोग सासक क खुस करइ क जतन करत ह अउर हर एक मनइ ओकर मीत बन जावा चाहत हीं, जउन उपहार देत रहत ह।

निर्धन क सब संबंधी ओहसे कतरात हीं। ओकर मीत ओहसे केतना बचत फिरत हीं, जदपि उ ओन लोगन स मदद बरे बिनती करत हीं तउ पइ भी उ पचे ओकर लगे नाहीं जाइहीं।

जउन गियान पावत ह उ आपन प्राण स ही प्रीति राखत ह, उ जउन समुझ-बूझ बढ़ावत रहत ह फलत अउर फूलत ह।

लबार गवाह सजा पाए बिना नाहीं बची, अउर उ, जउन झूठ उगलत रहत ह, ध्वस्त होइ जाइ।

10 मूरख धनी नाहीं बनइ चाही। उ अइसे होइ जइसे कउनो दास युवराजन पइ राज करइ।

11 बुद्धिमान मनइ सदा साँत रहत ह। जब उ ओन लोगन क छिमा करत ह जउन ओकरे खिलाफ होइँ, तउ ओकर सम्मान अउर भी बढ़ जात ह।

12 राजा क किरोध सेर क दहाड़ जइसा अहइ, मुला ओकर कृपा घास पइ ओसे क बूँद स होत ह।

13 मूरख पूत आपन बाप बरे बिनासे क लावत ह। अउर एक झगरालू पत्नी हमेसा टपकइ वाला पानी क नाईं अहइ।

14 भवन अउ धन-दौलत महतारी बाप स विरासत मँ मिल जात ह। मुला बुद्धिमान पत्नी यहोवा क ओर स धन्न अहइ।

15 आलस गहिर घोर नींद देत ह; मुला उ आलसी भूखा मरत ह।

16 अइसा मनई जउन आदेसन पइ चलत ह उ आपन जिन्नगी क रच्छा करत ह। मुला जउन आदेसन क उपेच्छा करत ह उ निहचय ही मउत अपनावत ह।

17 गरीब पइ किरपा देखाउब यहोवा क उधार देब अहइ, यहोवा ओका, ओकरे इ कामे क प्रतिफल देइ।

18 तू आपन पूत क अनुसासित करा अउर ओका सजा द्या, जब उ अनुचित होइ। बस इहइ आसा अहइ। अगर तू अइसा करइ क मना करा, तब तउ तू ओकरे बिनासे मँ ओकर सहायक बनत अहा।

19 अगर कउनो मनई क तुरंत किरोध आवइ, ओका एकर कीमत चुकावइ क होइ। अगर तू ओकर रच्छा करत अहा, तउ केतनी ही बार तोहे ओका बचावइ क होइ।

20 सुमति पइ धियान द्या अउर सुधार क अपनाइ ल्या तू जेहसे आखीर मँ तू बुद्धिमान बन जा।

21 मनई अपने मने मँ का का करइ क सोचत ह; कितुं यहोवा क जोजना पूरा होत ह।

22 लोग चाहत हीं मनई बिस्सास जोग्ग अउ सच्चा होइ। एह बरे गरीबी मँ बिस्सास क जोग्ग अउ सच्चा बनके रहब उचित अहइ अइसा मनई स जउन झूटा अउर धनी अहइ।

23 यहोवा क भय सच्ची जिन्नगी क राह देखावत ह, एहसे मनई सान्ति पावत ह अउर कस्ट स बचत ह।

24 एक आलसी आपन हाथ थारी मँ डालत ह मुला उ ओका मुँहे तलक उठावइ मँ बहोत सुस्ती क अनुभव करत ह।

25 ठट्ठा करइवाला मनई क मारा ताकि एक साधारन जन आहसे सीख पाइ। मामूली डाँट डपट ही एक बुद्धिमान मनई बरे काफी होत ह।

26 अइसा पूत जउन निन्दा क जोग्ग करम करत ह घरे क अपमान होत ह; उ अइसा होत ह जइसे पूत कउनो आपन बाप स छोरइ अउर घरे स असहाय महतारी क निकारि बाहेर करइ।

27 हे मोर पूत अगर अनुसासन पइ धियान देब तजि देब्या, तउ तू गियान क बचनन स भटक जाब्या।

28 भ्रस्ट गवाह निआव क सम्मान नाहीं देत ह। अउर दुस्ट क मुँह बुराई क भस्म कर देत ह।

29 उ जउन सम्मान नाहीं देत ह सजा पाइ, अउर मूरख जन क पीठ कोड़न खाइ।