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बिलदद अय्यूब स बोलत ह

एकरे पाछे सूह प्रदेस क बिलदद जवाब देत भए कहेस

“तू कब तलक अइसी बातन करत रहब्या?
    तोहार सब्द तेज आँधी क तरह बहत अहइँ।
परमेस्सर सदा स्वच्छ रहत ह।
    निआउवाली बातन क सर्वसक्तीवाला परमेस्सर कबहुँ नाहीं बदलत ह।
एह बरे अगर तोहार सन्तानन परमेस्सर क खिलाफ पाप किहन ह तउ ओनका राजा दिहस ह।
    आपन पापन खातिर ओनका भोगइ क पड़ा ह।
मुला अब अय्यूब, परमेस्सर कइँती निगाह करा,
    अउर सर्वसक्तीमान परमेस्सर स ओकर दाया पावइ खातिर बिनती करा।
अगर तू पवित्तर अउर ईमानदार अहा,
    तउ उ हाली तोहार मदद बरे आइ।
    उ तोहार नीक घरे क रच्छा करब।
जउन कछू भी खोया उ तोहका नान्ह स बात लगी।
    काहेकि तोहार भविस्स बड़ा सुफल होइ।

“ओन बुढ़वा लोगन स पूछा
    अउर पता करा कि ओनकर पुरखन क सीखे रहेन।
काहेकि अइसा लागत ह जइसा कि हम तउ बस काल्ह ही पइदा भएन ह,
    हम कछू नाहीं जानित।
    परछाई क तरह हमार उमर भुइँया पइ बहोत छोट क अहइ।
10 होइ सकत ह कि बूढ़वा लोग तोहका कूछ सिखाइ सकइँ।
    होइ सकत ह जउन उ पचे सीखेन ह उ पचे मोका सिखाइ सकइँ।”

11 बिलदद कहेस, “का भोजपत्र क बृच्छ दलदल भुइँया क इलावा कहुँ बढ़ सकत ह
    का नरकट बे पानी क बाढ़ि सकत ह?
12 नाहीं, अगर पानी झुराइ जात ह तउ उ पचे भी मुरझाइ जइहीं।
    ओनका काटा जाइ जोग्ग काटिके काम मँ लिआवइ क उ पचे बहोत छोट रहि जइहीं।
13 उ मनई जउन परमेस्सर क बिसारि जात ह, नरकट क तरह होत ह।
    उ मनई जउन परमेस्सर क बिसारि जात ह ओकरे बरे कउनो आसा नाहीं अहइ।
14 उ मनई क बिस्सास बहोत दुर्बल होत ह।
    उ मनई मकड़ी क जाला क सहारे रहत ह।
15 अगर कउनो मनई मकड़ी क जाले क सहारा लेत ह,
    इ टुटि जाइ।
अगर उ मकड़ी क जाल क पकरत ह,
    इ नस्ट होइ जाइ।
16 उ मनई उ पौधे क नाई अहइ जेकरे लगे पानी अउ सूरज क रोसनी बहोतइ अहइ।
    ओकर डारियन बगिया मँ हर कइँती सँचरत हीं।
17 उ पाथर क टीला क चारिहुँ कइँती आपन जड़न क फइलावत ह
    अउ चटटान मँ जमइ बरे कउनो ठउर हेरत ह।
18 जब पौधा आपन जगह स उखाड़ दीन्ह जात ह,
    तउ कउनो भि नाहीं जान पात ह कि हुआँ कबहुँ कउनो पौधा रहा।
19 मुला उ पौधा हुआँ खुस रहा,
    अब दूसर पउधन हुआँ जमिहीं, जहाँ कबहुँ उ पउधा रहा।
20 मुला परमेस्सर कबहुँ भी निर्दोख मनई का नाहीं तजी
    अउर उ बुरे मनई क सहारा नाहीं देइ।
21 अबहुँ भी परमेस्सर तोहरे मुँह क हँसी स भरि देइ।
    तोहरे ओंठन क खुसी स चहकाइ देइ।
22 परमेस्सर तोहरे दुट्ठ दुस्मनन क लज्जा स झुकाइ देइ।
    अउर ओनकर घरन क नास कइ देइ।”